भिन्डी की उन्नत खेती
जलवायु, भूमि : भिंडी के लिये लम्बी अवधि का गर्म व नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगने के लिये 27-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता हे तथा 17 डिग्री सेंटीग्रेड से कम पर बीज अंकुरित नहीं होते। यहु फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही मौसम में उगाई जाती हे। भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता हे। भूमि का पी एच मान 7.0 से 7.5 होना उपयुक्त रहता हे।
खेत की तेयारी : भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए।
उन्नत किस्में : पूसा ए - 4, परभनी क्रांति, पंजाब -7, अर्का अभय, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, वी.आर.ओ. - 6,
बीज की मात्रा व बुआई का तरीका : सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है। भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोये जाते है। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सेंटीमीटर एवं कतारों में पौधे की बीच 25-30 सेंटीमीटर का अंतर रखना चाहिए । ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेंटीमीटर एवं कतार में पौधे से पौधे के मध्य दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज की 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब + कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। पूरे खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें जिससे कि सिंचाई करने में सुविधा हो। वर्षा ऋतु में जल भराव से बचाव हेतु उठी हुई क्यारियों में भिण्डी की बुवाई करना उचित रहता है।
बुआई का समय : ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाईु फरवरी-मार्च में तथा वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है।
खाद ओर उर्वरक : भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश की क्रमशः 80 किलोग्राम, 60 किलोग्राम एवं 60 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टर की दर से देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।
निराई व गुडाई : नियमित निंदाई-गुडाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुडाई करना जरुरी रहता हे। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक नींदानाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है।
सिंचाई : सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रेल में 7-8 दिन और मई-जून मे 4-5 दिन के अन्तर पर करें। बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पडती हैं।
कर्टाइ व उपज : किस्म के अनुसार 45-60 दिनों में तुडाई प्रारंभ की जाती है और 4 से 5 दिनों के अंतराल पर नियमित तुड़ाई की जानी चाहिए। ग्रीष्म कल में उत्पादन 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। तुड़ाई में देरी से फल कड़े हो जाते है इसलिए फूल खिलने के 5 से 7 दिन में आवश्यक रूप से तुड़ाई कर लेनी चाहिए। उचित देखरेख, उचित किस्म व खाद- उर्व रकों के प्रयोग से 130-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है।
कीट एवं बीमारियां : भिन्डी की फसल में मुख्य रूप से निम्न कीट एवं रोग लगते है जो उपज को प्रभावित करते है।
येल्लो वेन मोज़ेक : पत्तिया की शिराए पीली पडने लगती है, धीरे धीरे पूरी पत्तियां और फल भी पीले हो जाते है। पौधे की बढवार रुक जाती है। नियंत्रण के लिए रस चुसक कीड़ो का नियंत्रण करें। आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 ई सी या डायमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें।
पाउडरी मिल्ड्यू : भिन्डी की पूरे पत्तियों पर सफ़ेद चूर्ण सा फ़ैल जाता है। इस रोग के नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा अथवा हेक्साकोनाज़ोल 5 ई सी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर 2 या 3 बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
तना एवं फल छेदक : इस कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे तना सुख जाता है । फूलों पर इसके आक्रमण से फल लगने के पूर्व फूल गिर जाते है। फल लगने पर इल्ली छेदकर उनको खाती है जिससे फल मुड जाते है और खाने योग्य नहीं रहते है।
रस चुसक कीट (हरा तेला, मोयला और सफ़ेद मख्खी) : ये सूक्ष्म कीट रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है। नियंत्रण के लिए आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 ई सी या डायमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें।
रेड स्पाइडर माईट : यह कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहता है। और पौधों का रस चूसता है क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली पड़कर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है अधिक प्रकोप सम्पूर्ण पौधा सुख कर नष्ट हो जाता है। नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।